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दिल्ली दूर है तो क्या इरादे भी मजबूत हैं

दिल्ली के कई किस्से और कई कहानियां हैं। खुशी है, दर्द है इसके कई गम हैं। दिल्ली कभी दिलवालों की हो जाती है। तो कभी काम की तलाश में निकले बेरोजगारों की। रोजगार की तलाश में निकले मजदूरों की। अच्छे वेतन में नौकरी करने वालों की, उच्च शिक्षा के लालायित पढ़ाई करने वाले छात्रो की। सिविल सेवा की तैयारी करने वाले उच्च महत्वाकांक्षी युवाओं की।‌ दिल्ली राजनीति में भविष्य तलाशने निकले नेताओं और दहशत फैलाने निकले आतंकियों की हो जाती है। दिल्ली कभी मांग पूरी नहीं होने पर विरोध करने का जगह होती है तो कभी दंगा फैलाने की। यह दिल्ली है यह कहने को तो केंद्र शासित प्रदेश है और यहां एक नहीं दो-दो राजधानियां और दो-दो सरकारों काम करती हैं, लेकिन व्यवस्था एक से भी सही नहीं हो पा रही। हिंदी पट्टी के ज्यादातर लोग (लोग इसलिए क्योंकि बच्चे से बुजुर्ग तक सभी) अपने जीवनकाल में एक बार दिल्ली जरुर जाना चाहते हैं। तभी तो कहावत भी बनी दिल्ली अभी बहुत दूर है।        स्कूल की किताबों में विज्ञान का चमत्कार (wonder of science) पढ़ाया जाता है जिसमें संसाधनों के बढ़ने और मेट्रो रेल के चलने से इसकी दूरी कम बताई गई है। सच