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वो कत्ल की रात थी

भोपाल में 2-3 दिसंबर की रात 1984 में कत्लेआम किया गया। इससे प्रभावित 15000 लोगों ने अपने जान गवाएं और करीब 1.50 लाख लोंग आज भी उसका दर्द झेल रहे हैं। दर्द ऐसा जो असहनीय है इसलिए भी क्योंकि शासन, प्रशासन, कोर्ट किसी ने भी इस दर्द को दुर करने कुछ नहीं किया। कुछ करने का मतलब भी यह है कि मुख्य आरोपी को खुद सरकार ने विदेश पहुंचा दिया, बाकी छुटभैये आरोपी को भी कोई खास कार्रवाई नहीं किया। इतने बड़े हादसे के लिए जिम्मेदारों बचे रह गए। न शासन ने जिम्मेदारी ली न प्रशासन ने। हाल में न्यायिक जांच आयोग ने मामले की जांच भी किया तो वह भी बस नाम का। सवाल तो बनता है बॉस आखिर 31 साल तक न्यायलयों ने क्या किया? शासन ने क्या किया? और प्रशासन ने किया ही क्या? सवाल तो उठना ही है  चाहे वे देश की सरकार के तीन अंगो कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका पर हो या फिर भारत के संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी गणराज्य पर। कुछ नहीं किया गया। भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों के लिए किसी ने कुछ नहीं किया। इसलिए तो वह कत्ल की रात थी। चारो तरफ सिर्फ कत्ल किया गया, कत्लेआम किया गया, जगजाहिर कत्ल सरेआम होने के बाद