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सरकार का बहुरुपिया चेहरा, नसबंदी के बाद अब जवानों की शहादत लापरवाही किसकी तय नहीं

छत्तीसगढ़ की सरकार का बहुरुपिया चेहरा अब नजर आने लगा है। सरकार में बैठे दोहरे चेहरे वालों को लोग पहचानने लगे हैं। लोगों को यह भी पता चल रहा है कि अब क्या हो रहा है। उसने तीसरी बार एक ही पार्टी की सरकार चुनकर कितनी बड़ी गलती किया है यह उसे अब खल रहा है। दूसरी बार में मिले दर्द और सबक को भूला कर तीसरी बार सरकार चुनने पर सरकार से जो दर्द मिला है वह कभी नहीं भूला जा सकता। अभी वे सरकार के दूसरे कार्यकाल की घटनाओं को भूल भी नहीं है कि  नया दर्द छत्तीसगढियों को फिर मिला है। सुकमा में एकबार फिर नक्सल हमला हुआ 14 जवान शहीद हुए। इससे पहले भी जवानों पर यहां हमला होती रही है। जवाने हमारे मारे जाते हैं। कायर नक्सली अपनी कायरता दिखाते रहते हैं। नक्सलियों से ज्यादा कायर तो हमारी खुद की सरकार है। जो सत्ता के लोभ में सिर्फ जवानों की बली दे रही हैं। सरकार को कुर्सी का मोह इस तरह हो गया है कि वह किसी भी बड़े कदम को उठाने से भी कतरा रही है। शहीद हुए जवानों को ऐसे लोगों को श्रद्धांजलि नहीं देना चाहिए। ऐसे कायरों को तो उन शहीदों को छूने भी नहीं देना चाहिए। इससे पहले बिलासपुर में नसबंदी कराई महिलाओं को जहर

सेक्स सामग्री बेचने की होड से फैला एड्स, लोगों हो रहे भ्रमित

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विश्व एड्स दिवस लोगों में बीमारी से ज्यादा भ्रम है 1 दिसंबर को दुनिया विश्व एड्स दिसव के रूप में मनाती है। इस दिन एड्स बीमारी से लड़ने एकजुट होने का संदेश देती है। एड्स एक मात्र ऐसी बीमारी थी जिसके पता चलने पर 1988 मेें लोग इसके खिलाफ एकजुट हुए। इसके लिए 1 दिसंबर को इसके जागरूकता और एक साथ रहने के लिए तय किया। जब से एड्स रोग की पहचान हुई थी तब शुरुआत में होमोसेक्सुअल आदमियों की एक बीमारी समझा जाता था। इसे ग्राइड (गे-रिलेटेड इम्युन डेफिमगएंसी) अर्थात गे लोगों मे रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी समझा गया था। इस बीमारी को एड्स नाम 1982 में दिया गया था। अमेरिकन हेल्थ और ह्यूमन विभाग 29 अप्रेल 1984 को एड्स के कारण के तौर पर रेट्रोवायरस जिसे बाद में एचआई‌वी(ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) नाम दिया गया। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार इस बीमारी का पहला केस 1981 में मिला। तब से लेकर अब तक लगभग 39 मिलियन लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके है। इस दौरान वैज्ञानिकों ने कई खोजें और रिसर्च किए। इसके बाद भी सारी दुनिया में इसके लिए आई जगरूकता के बाद भी इस बीमारी का कोई इलाज नहीं मिल पाया है। यह अभी भी ल