सबको अब पीतरों की याद आने लगी है, अब चले आओ
पितृ पक्ष शुरू हो गया है। सुबह से ही लोगों के घरों में अपने पितरों को बुलाने का दौर शुरू हो गया है। घर में चिड़ियों खास कर कौओं के लिए भोजन रखे जा रहे हैं। गायों की सेवा हो रही है, कुत्तों को भी रोटिया खिलाई जा रही हैं। प्रदुषित हो चुके तालाबों और नदियों में अपने जीवन को नर्क समान जीने वाले जीवों मछलियों को भी आटे के गोलिया खिलाई जा रही हैं। सब पितरों को मोछ प्राप्त कराना है। यह सब हमारे बच्चे भी देख रहे हैं। वे भी आने वाले समय में वही करेंगे जो हम कर रहे हैं। पूरी जिंदगी अपने मां बाप को दो-वक्त की रोटी तक समय पर नसीब नहीं होने देते। पहले-पहल वे हमे अच्छे कपड़े मिले, पुस्तक मिले शिक्षा मिले इसके लिए परेशान रहते हैं तब समय पर नहीं खा पाते। फिर हम उन्हें वृद्धाश्रम भेजकर खाना ही नहीं देते। मरने पर उनकी आवभगत करते हैं क्या फायदा। इससे तो अच्छा है यह पितृपक्ष कभी आए ही न। पितृ पक्ष परिवार को जोड़ने के लिए होता है। परिवार को समूह बनाने के लिए होता है। सामूहिक परिवार का अंग है पितृ पक्ष। यह न सिर्फ पितरों को बुलाने का बल्कि पुर्वजों को याद करने के लिए एकजुटता के लिए है। इसमें समाज और वायु मंडल