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सितंबर 11, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

न्यायालयों की व्यवस्था कब सुधरेगी

 कई मुद्दे ऎसे है जिसपर आवाज उठनी चाहिए। कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना अवमाना की श्रेणी में अता है पुरे कोर्ट की व्यवस्था पर टिप्पणी करना गलत नहीं और न ही यह अवमानना है। अब मुद्दे पर आता हूं १. बिलासपुर हाईकोर्ट के फैसले रोज वेबसाइट पर अपलोड नहीं होते। २. हिंदी भाषी राज्य है इसलिए परिवादी उम्मीद करता है कि फैसला उसे समझ आए, ऎसा न्याय किस काम का जो समझ ही न आए या उसे भी समझने के लिए अधिवक्ताओं की जरूरत पडे। बोलता हुआ फैसला आना चाहिए। ३. वैसे तो रजिस्ट्रार जनरल एथेंटिक व्यक्ति होता है कि वह फैसला ले ले कि मीडिया को क्या क्या शेयर किया जा सकता है, लेकिन रोज के मामले शेयर नहीं किए जाते। ४. मिडिया के लिए हाईकोर्ट में कोई जगह क्यों नहीं है।  मिडिया को फिर चौथा स्तंभ क्यों माना जाता है। खासकर मीडिया को हाईकोर्ट में प्रवेश पर रोक क्यों है।  ५. कोर्ट की गतिविधियां मीडिया के गैर मौजूदगी में संदिग्ध होती जा रही है। ६. कोर्ट के क्रियाकलापों में पारदर्शीता नहीं देखने मिलता।  ७. हाईकोर्ट में पीआरओ की नियुक्ति नहीं है जो रोज होने वाले फैसले के अलावा कार्यक्रमों की जानकारी मीडिया को शेयर करे। ८. हाईक

साहब आपका ध्यान कहां है न्यायालयों में लाखों केस लंबित हैं

 न्यायालयों में लाखों केस लंबित हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही हजारों लोग अवमानना की याचिका दायर किए हुए हैं। ये सब के सब महत्वपूर्ण मामले हैं, जिनपर सुनवाई होनी बहुत जरुरी है। क्योंकि एक बार कोर्ट ने आदेश दे दिया तो उसका पालन समय पर होगा तभी न्याय है। और तभी न्याय होगा।  इसके विपरीत हालिया घटना क्रम पर नजर डालें तो… एक वकील प्रशांत भूषण तीन जज जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस बीआर गावी और जस्टिस कृष्णा मुरारी।  एक ट्वीट मुद्दा शीर्ष न्यायालय में भ्रष्टाचार का। पहले माफी का दौर और फिर एक रुपए की सजा। अब इससे आगे बढ़ते हैं। जस्टिस के नाम                 वेतन जस्टिस अरुण मिश्र     2.50 लाख (भत्ता अलग) जस्टिस बीआर गावी    2.50 लाख (भत्ता अलग) जस्टिस कृष्णा मुरारी   2.50 लाख (भत्ता अलग) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई हुई। बिजली का खर्च, कंप्यूटर व दूसरे उपकरणों पर खर्च।  इनके द्वारा इस केस के अलावा एक दिन में सुने गये मामलों की संख्या। एक केस पर दिया गया समय। केस चला कितने दिन तक! उस हिसाब से जोड़े तो लाखों रुपए जो देश की जनता से लिया गया टैक्स है और उससे जुटाई गयी संसाधन का उपयोग किय

कोरोना से डरें नहीं यह संक्रमण ठीक हो रहा है

 जो कोरोना संक्रमित हो गये हैं। उनको साफ शब्दों में कहना चाहता हूं कि आप संक्रमित हुए हैं। बीमार नहीं हैं। आपको यह बता दूं कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद मैं आज ठीक हो गया हूं। इसी दौरान आप सभी के संक्रमित होने की सूचना मिली। आप निराश बिल्कुल मत होइएगा। यह कोई बीमारी नहीं है, संक्रमण है। कोई भी संक्रमण दस दिन में ठीक हो जाता है। कोरोना चौदह दिनों में ठीक होता है। आप योगाभ्यास, ध्यान और दवाइयों का नियमित सेवन करते रहिए। कोरोना का प्रभाव दस दिनों में खत्म हो जाता है। मेरा खुद दस दिनों में खत्म हो गया है। आपके घर में अलग कमरा अटैच लेट बाथ का हो तो आप अस्पताल न जाकर डाॅक्टर के परामर्श पर होम आईसोलेशन में रह सकते हैं। अस्पताल में कोरोना संक्रमित का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। सुविधाएं थोड़ी कम है, जो होनी भी चाहिए। लेकिन वहां भी गर्म पानी, चाय, नाश्ता, दोपहर का खाना, शाम का चाय बिस्कुट, रात का भोजन दिया जा रहा है। मुझे खुद मिला है। यही सब चीजें घर में घर जैसा और घरेलू माहौल में मिलेगा जिससे आप और जल्द स्वस्थ हो जाएंगे। आप खुद निर्णय लीजिए अस्पताल या घर इलाज के लिए आपको कहां रहना है। घर में

शव का अंतिम संस्कार रोकना पाप नहीं गुनाह है

 कोरोना के दौर में कयी खबरें मिली। इनमें से एक सामजिक बहिष्कार के रूप में शव दाह गृह में अंतिम संस्कार का विरोध किए जाने के समाचार ने मुझे ज्यादा व्याकूल किया। कहां किस समाज के हम हिस्सा हैं। ऐसा समाज जहां इतने नीचऔर निकृष्टतम लोग रह रहे हैं। अरे छुआ छूत की बीमारी है कोरोना ठीक है, इसका मतलब यह तो नहीं की ऐसे में ऐसी सामाजिक दूरी बना ली जाए कि किसी का शव दाह न करने दे। हां ठीक है सामाजिक दूरी का दौर चल रहा, लेकिन शव का अंतिम संस्कार रोकना बिना सर पैर वाली हरकत है। यह हरकत किया जाना सामाजिक बदलाव का ही एक रूप है। लोग असभ्य होते जा रहे हैं। अपनी संस्कृति और परंपराओं को भूलते जा रहे हैं। कुछ सालों में यह बदलाव देखने मिला है। लोग एकल परिवार में रहते रहते यह भूल गये हैं कि उनके साथ भी ऐसी घटना हो सकती है। तब यही समाज उनका साथ देगा। राजनैतिक स्वार्थ में लोग ऐसे मौके का फायदा भी खूब उठा रहे हैं। इंसानियत को जिंदा रखने के लिए कुछ लोग जहां जान जोखिम में डालकर समाज सेवा कर रहे हैं। वहीं इसी समाज में शामिल मानसिक गंदगी लिए कुछ लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। ये लोग कहां से कैसे पिशाच बन गय

कोरोना चर्चा: अस्पताल में जाने से पहले कोरोना जांच कराएं

 #कोरोनाचर्चा निजी अस्पतालों से सवाल है कि कोरोना का ऐसा कौन सा इलाज कर रहे हैं जो इतना ज्यादा राशि वसूल रहे हैं?  सरकार जानती है कि हर मरीज को वेंटीलेटर की जरुरत नहीं है। कुछ सिरियस पेशेंट को ही वेंटीलेटर की जरुरत है। बाकि को सिर्फ सही खान पान व कुछ दवाइयां खिलाकर ही ठीक किया जा सकता है और किया जा रहा है। मैं खुद उन्हीं दवाओं के सेवन से ठीक हुआ हूं। इसके बाद भी निजी अस्पताल लूट मचाए हुए हैं। किसी भी मरीज के पास कोई अस्पताल अपने कर्मचारी नहीं भेजता। पहली बार जब जांच होता है तभी बस कर्मचारी आरटीपीसीआर या एंटीजन का सेंपल लेने के लिए मरीज के पास आता है। वह पीपीई पहने होता है, इसके बाद भी मरीज को बहुत कम बार छूता है। एक पीपीई से कई ‌मरीजों का सेंपल लिया जा सकता है, बसर्ते सावधानी से लिया जाए तो। हां गल्बस बार बार बदलना होता है। इसके बाद एक बार जब संक्रमित मरीज अस्पताल आता है तब उसका तापमान थर्मल स्केनर से चेक करते हैं वह भी शीशे के अंदर से लिया जा सकता है।  आवश्यक दवाइयां दूर से दे दी जाती हैं। आवश्यक निर्देश दवाई को कैसे कितनी‌मात्रा में खाना है यह भी बता दिया जाता है। बार बार जो पीपीई पह

डब्ल्यूएचओ और फेसबुक कर रहे गुमराह, कोरोना का समर्थन कर रहे

डब्ल्यूएचओ कह रहा है कि #एचसीक्यूसी (हाईड्रोक्सिक्लोरोक्विन) कोरोना की दवा नहीं है। यह मकेरिया और दूसरी बीमारियों की दवा है। अब सवाल यह उठता है कि फिर यह दवा कोरोना मरिजों को क्यों दी जा रही है? दुनियाभर में कोरोना मरीजों को यह दवा देकर ठीक किया जा रहा है और दवाइयां लगातार दी जा रही हैं। #डब्ल्यूएचओ इन दवाओं का कोरोना मरीजों को वितरण किए जाने पर दिसंबर 2019 से अब तक कोई कार्रवाई दुनियाभर के देशों पर क्यों नहीं किया? क्या डब्ल्यूएचओ की जिम्मेदारी नहीं है कोरोना संक्रमण को रोकाना?  डब्ल्यूएचओ लगातार कोरोना मामले में फेल रहा है। न तो अब तक दवा खोज पाया, न ही यह कैसे फैल रहा इसकी सही जानकारी दे पाया और न ही कोरोना फैलाने वाले  मामले में चीन के खिलाफ कार्रवाई किया है। उल्टे चीन का साथ देने वाली एक मात्र संस्था डब्ल्यूएचओ ही है। वरना अब तक डब्ल्यूएचओ चीन के खिलाफ कार्रवाई जरुर करता। शक है कि डब्ल्यूएचओ के अधिकारी चीन से मोटी रिश्वत लेकर हाईड्रोक्सिक्लोरोक्विन जो कि कोरोना मरीजों को दी जा रही है मरीज जिससे ठीक हो रहे हैं को साजिश के तहत बदनाम करने के लिए कोरोना की दवा के रूप में शामिल नहीं हो

कोरोना के दौरान का अनुभव

मैं कोरोना संक्रमित हो गया था। अब स्वस्थय होकर घर लौट आया हूं। कोरोना संक्रमण के दौरान जो सीखा वह सामाजिक आर्थिक विकास के बारे में। समाज में अगर आप समर्थ हैं तो लोग आपको पूजते हैं। मुझे अस्पताल में दस दिन गुजारना कोई कठिन नहीं था, क्योंकि मैं पहले भी अस्पताल में रह चुका हूं। इस बार अलग यह था कि अकेले रहना था। हर बार परिवार के साथ रहता था तो लोगों से बात करने का अवसर मिलता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। खुद को कोरोना संक्रमण था, दूसरों को भी था। इसलिए खुद से दूसरों को और दूसरों से खुद को बचाना था। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना था। एक बात इस दौरान जो समझ आई वह यह कि कोरोना कोई बीमारी नहीं है। एक संक्रमण है, जिससे डरने की जरुरत नहीं है। तकलीफ महसूस होते ही जांच कराकर खुद के साथ समाज की रक्षा कर सकते हैं। हां यह संक्रमण जान ले रहा है, लेकिन उन्हीं का जो लापरवाही बरत लिए हैं अथवा जिन्हें पहले से कोई बीमारी है। खासकर बीपी और शुगर के मरीजों के लिए यह घातक संक्रमण है। इस संक्रमण से बचाव के लिए सामाजिक दूरी जरुरी है। अस्पताल में रहने के दौरान एक बात और सीखने को मिला वह है धैर्य। धैर्य अस्पताल मे