न्यायालयों की व्यवस्था कब सुधरेगी
कई मुद्दे ऎसे है जिसपर आवाज उठनी चाहिए। कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना अवमाना की श्रेणी में अता है पुरे कोर्ट की व्यवस्था पर टिप्पणी करना गलत नहीं और न ही यह अवमानना है। अब मुद्दे पर आता हूं १. बिलासपुर हाईकोर्ट के फैसले रोज वेबसाइट पर अपलोड नहीं होते। २. हिंदी भाषी राज्य है इसलिए परिवादी उम्मीद करता है कि फैसला उसे समझ आए, ऎसा न्याय किस काम का जो समझ ही न आए या उसे भी समझने के लिए अधिवक्ताओं की जरूरत पडे। बोलता हुआ फैसला आना चाहिए। ३. वैसे तो रजिस्ट्रार जनरल एथेंटिक व्यक्ति होता है कि वह फैसला ले ले कि मीडिया को क्या क्या शेयर किया जा सकता है, लेकिन रोज के मामले शेयर नहीं किए जाते। ४. मिडिया के लिए हाईकोर्ट में कोई जगह क्यों नहीं है। मिडिया को फिर चौथा स्तंभ क्यों माना जाता है। खासकर मीडिया को हाईकोर्ट में प्रवेश पर रोक क्यों है। ५. कोर्ट की गतिविधियां मीडिया के गैर मौजूदगी में संदिग्ध होती जा रही है। ६. कोर्ट के क्रियाकलापों में पारदर्शीता नहीं देखने मिलता। ७. हाईकोर्ट में पीआरओ की नियुक्ति नहीं है जो रोज होने वाले फैसले के अलावा कार्यक्रमों की जानकारी मीडिया को शेयर करे। ८. हाईक