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अक्तूबर 21, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिना सिर पैर के संचालित हो रहे इलेक्ट्रानिक मीडिया

सातवां वेतनमान आयोग  केंद्र सरकार ने  लागू कर दिया। इसकी अड़चनों को लेकर अब आंदोलनों का दौर चल रहा है। जिसे प्रिंट के साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोग कवरेज कर रहे हैं। इसी तरह के कई आयोग सालों से प्रिंट मीडिया के लिए भी बने हैं। इसमें हालिया विवाद में मजीठिया है। जिसे देने के लिए प्रेस मालिक तैयार नहीं है और प्रिंट मीडिया के लोग लगातार हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके विपरित इलेक्ट्रानिंक मीडिया जन्म से अनाथ जैसी है। यहां प्रिंट मीडिया से भी ज्यादा शोषित वर्ग है, पत्रकारिता के नाम पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के रिपोर्टर, कैमरा मैन के साथ जिस तरह का शोषण हो रहा है वह देखने लायक है। बावजूद इसके इनके लिए न तो आज तक कोई बोर्ड का गठन हुआ न वेतन आयोग और न ही कोई नियम बनी।  न उनके वेतन को लेकर न उनकी सुरक्षा को लेकर। पत्रकार मर रहे हैं तो इससे सरकार को क्या? वे बीमार है तो प्रेस, इलेक्ट्रानिक मीडिया के मालिकों को क्या?           टीवी चैनलों में बैठकर देश और राज्य की बात करने वाले दिग्गज ने कभी पत्रकारों की दशा पर चिंता नहीं की।  सरकारों ने भी मीडियाकर्मियों के लिए गठित