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कश्मीर व्यथा कथा तीन किश्त- कनक तिवारी

लहूलुहान अनुच्छेद 370 की कश्मीर व्यथा कथा पहली किश्त (1)भारतीय नेताओं के कारण सियासत का घाव पक गया है और उसमें मवाद भी है। सियासत की हर सांप्रदायिक खखार के जरिए देश के माहौल में हिंसा का बलगम थूका जा रहा है। यह समय बहुत परेशानदिमागी और चुनौतियों के साथ नागरिक खतरे का भी हो रहा है। हर सच को जिबह कर उसे नारों के गर्भगृह में भ्रूण बना दिया जाता है। यदि किसी घटना, निर्णय या तर्क की तटस्थ, उर्वर, बौद्धिक और देशज जांच की जाए तो उस पर नासमझ समर्थकों द्वारा कायिक, बौद्धिक और मानसिक हमले कराए जाते हैं। इसके बावजूद देश है कि उसे रोशनी की तरफ चलना है। घटाटोप अंधेरा अब उसका नहीं है जिसका सूरज दिन के चौबीस घंटे संसार के किसी मुल्क के ऊपर इतराता रहता था। यह खतरा हिन्दुस्तानी खुद उगा रहे हैं। हर समझदार नागरिक और विशेषकर युवा पीढ़ी को अब सभी विचारधाराओं को दरकिनार करके केवल उस राष्ट्रीय फलसफाई पुस्तक संविधान की इबारत को इस तरह समझने की जरूरत है मानो वह दिए या टाॅर्च की रोशनी बल्कि जुगनू की जगमग तो मान ली जाए जिससे अंधेरा छंटे। जम्मू कश्मीर की सत्यनारायण की कथा का पाठ हर उस पार्टी और नेता की आलोचना भ