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जुलाई 30, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लगातार प्रताड़ित कर रही है प्रकृति

लगातार प्रताड़ित कर रही है प्रकृति... जुलाई में सावन आता है और बारिश की फूहार होती है लोग उत्साहित होते हैं पर कुछ सालों से ऐसा नहीं हो रहा है। पिछले साल जहां उत्तराखंड तबाह हुआ वहीं इस साल भी कुछ कम हादसे जुलाई में कम नहीं हुए। हर तरफ से हादसों का समाचार आ रहा है, देख लिया हमने प्रकृति से छेड़खानी की तो उसने नहीं बख्शा चाहे वह सुनामी हो या उत्तराखंड। अब महाराष्ट्र के पुणे के भीमाशंकर को हीं ले तो पाएंगे की गांव के ऊपर पहाड़ टूट पड़ा। हम दबने वाले और मृत लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त कर रहे हैं ऐसा नहीं होना था। बुधवार की सुबह हुई यह भूस्खलन क्या वाकई प्रकृति है सिर्फ लगातार चार दिनों से बारिश होने के कारण यह हुआ है। नहीं यह लगातार पानी बरसने से नहीं हुआ इसके पीछे कारण है। हां हो सकता है इस गांव में न हुआ हो पर आसपास के क्षेत्र में यह लगातार हो रहा है। सिर्फ आस पास के क्षेत्र ही नहीं माहाराष्ट्र और पर्टिकुलर कुछ राज्य की बात यहां नहीं हो रही है यहां बात कर रहा हूं प्रकृति के साथ खिलवाड़ की। उत्तराखंड में इतने बांध बना दिया गया इतने पेड़ काट दिये गये और तो और नदियों को उल्टा बहने पर

जगंल काट रहे हैं तो जानवर नहीं छोड़ेंगे यह तय है

जगंल काट रहे हैं तो जानवर नहीं छोड़ेंगे यह तय है.. लगातार कट रहे पेड़-पौधे और जंगल का घटता रकबा हमें सचेत होना होगा। वरना वह दिन दूर नहीं जब न बारिश होगी और न फसल उगेंगे। सबसे बड़ी बात यह होगी कि जिनके घरों को आज हम छीन रहें है वे बेघर होंगे आने वाले समय में और फिर वे आसरा ढुढ़ंने आएंगे हमरे पास... सोचिए अगर शेर या भालू, हाथी या गेंडा हमारे बस्तियों में आएं और लोगों को मार कर उनके घरों पर कब्जा कर लें तो क्या होगा। आने वाले समय में होना भी ऐसा ही चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वज और हम दोनों वैसे ही है। आखिर कितना सहेंगे ये लोग वे भी प्राणी ही है उन्हें भी चोट लगती है दर्द होता है। उनको भी खाना चाहिए और वे भी प्यास लगने पर पानी हीं पीते है। जीन नदियों को हम आद इतना गंदा कर दिए हैं कि उसका पानी हम खुद नहीं पी पा रहे है वैसे में सोचिए ऐ न बोलने वाले जानवर कैसे उस पानी को पीकर अपना जीवन यापन कर रहे  है।                       हे मानव मनु की संतान इतना निर्दयी कब बन गया तू इन न बोलने वाले जीवों की रक्षा में तूझे करनी है यह तू ही कर सकता है। नदी साफ कर, पेड़ लगा पशु वध पर रोक लगा। जैसा तू प्रा

टमाटर इतना लाल कैसे हुआ

टमाटर इतना लाल कैसे हुआ... टमाटर के दाम में अचानक हुई वृद्धि ने लोगों की सब्जियों से यह दूर हो गया है। इसका न अब सलाद में उपयोग हो रहा है और ना ही सब्जियों में डाला जा रहा है। इसके दाम की बढ़ोत्तरी की एक कहानी है। कहानी यह है कि पहले लगभग हर घर में आम का चुरा या आम की खटाई हुआ करती थी. या आम को छिलकर काटकर लोग सुखाया करते थे और जब बारिश का मौसम आता था तो उसका उपयोग सब्जी को खट्टा करने के लिए किया करते थे। आज की स्थिति किसी से छूपा नहीं है न तो घरों में खटाई है और न ही लोग आम को सुखा कर रखते है। आज भूमंडलीकरण(Globalization) का दौर है और हर कोई अपने काम में व्यस्त है। ऐसे में किसी के पास इस काम के लिए समय नहीं है और सबसे दुःखद बात यह है कि इस ग्लोबलाइजेशन ने परिवारों को तोड़कर रख दिया है। लोग स्वतंत्र  और स्वच्छंद हो रहे हैं। मां बाप को वृद्धाश्रम भेज रहे है और बच्चों को बोर्डिंग स्कूल जिसको जहां मन कर रहा है वहां घूम रहा है। ऐसे में उनके ऊपर न तो अब समाज का डर है न लोक लज्जा। टामाटर में लोक लज्जा और समाज के डर की क्या जरुरत है यही सोच होगा आप का तो बता दें कि पहले दादी दादा और घर के