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मार्च 3, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गंगा में खेती

हर हर गंगे... गंगा नदी को पवित्र नदी यू ही नहीं कहते, नदी के जल में जहां एंटीबायोटिक होती है, वहीं नदी के किनारे बसे लोगों का जीवन यापन गंगा के भरोसे ही होता है। इन दिनों सहायक नदियों से आने वाले पानी का दबाव कम हो गया है। यही वजह है कि अब गंगा का जल बिखराव और तेज बहाव दोनों कम होने से किनारे पर कटाव व बाढ़ का असर भी समाप्त हो गया है। नदी का बहाव धीमा होते ही स्थानीय लोग सदियों से नदी के तट में तरबूज, ककड़ी और दूसरे फसलों की खेती कर रहे हैं। बारिश के बाद एक बार फिर किसान नदी के बीच में बड़ी संख्या में पौधे लगाए हैं। यह अगले माह अप्रैल से फसल देना शुरू करेंगे जो गर्मी में लोगों को राहत देंगे। उपजाऊ और बालुई मिट्टी तरबूज, ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त बताया गया है, गंगा के रेत सले लिए बहुत ही अच्छा है। सिंचाई के पानी के लिए किसान नदी में पचास फीट तक गहराई पर मोटर लगा देतें। डिजल से चलने वाले मोटर पर्याप्त पानी बाहर निकालते हैं। यह मोटर बारिश के समय किसान निकाल लेते हैं। इस तरह नदी को नुकसान पहुंचाए बिना किसान फसल की पैदावार लेते हैं। नदी की रेत पतली है इसलिए इसका उपयोग निर्माण काम कम