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फ़रवरी 18, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सरकारें बना रही पत्रकारिता पर दबाव

सरकारी तंत्र का दुरूपयोग करके पत्रकारिता पर दबाव बनाना सरकारों का अब एक हथकंडा हो चुका है। मुख्य तीन स्तंभ को अपने कब्जे में लेने के बाद अब कथित चौथे स्तंभ को भी मोड़ने की कोशिश की जा रही है। लोकतंत्र के सभी चारो स्तंभ लगभग सरकार के शरणागत हो चुके हैं, जो नहीं हुए उन्हें किसी भी हद तक जाकर गुलाम बनाया जा ‌रहा है। हाल के दिनों में जिस तरह से हाईकोर्ट में जजों की राजनैतिक नियुक्तियां करवाई गयी है, जिस तरह से आईएएस, आईपीएस राजनैतिक विशेष पार्टियों के लिए काम कर रहे हैं, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका पूरी तरह शरणागत हुए से दिखने लगे हैं। बीच बीच में दो‌ चार जजमेंट करके भले ही सुप्रीम कोर्ट और गिने चुने हाईकोर्ट के जज सुर्खियों में आ जाएं, वरन अब तो न्यायालय और न्यायपालिका से लोगों का भरोसा उठने सा लगा है। अपराधियों के लिए सहूलतें बढ़ती जा रही हैं, पीड़ित लगातार प्रताड़ित होते जा रहे हैं। लोक तंत्र से लोक गायब है, जन तंत्र से जन, न्यापालिका‌ से न्याय गायब है, व्यवस्थापिका से व्यवस्था, कार्यपालिका से कार्य गायब है, बची हुई थी मीडिया उससे अब समाचार गायब हो रहे हैं। अगर सरकार ने कह

नदियां हमारी मां है, उसके हम उपभोक्ता नहीं हो सकते, इसलिए नदी तीर्थ‌ शुरू करे सरकार

नदीवेता और पूर्व सांस्कृतिक राजदूत फिजी प्रो. ओमप्रकाश भारती प्रेस क्लब के पहुना कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में नदियों को मां का दर्जा प्राप्त है। पहले सरकार ने ब्रिटिश अधिनियम की नकल कर देश की नदी नीति बनाकर समाज से नदियों को छीन ली और अब सरकारें यूरोपीय देशों की नकल कर यहां नदी पर्यटन की बात कह रही हैं। जबकि नदियां हमारी मां है, मां का कोई उपभोक्ता नहीं हो सकता। नदियां मानव के पृथ्वी पर आने से‌ हजारों लाखों साल पहले से पृथ्वी पर मौजूद हैं तभी तो उसले किनारे पर मानव बसा, इसके उदाहरण अब मिल रही सभ्यताएं हैं। उन्होंने बिलासपुर के पत्रकारों को धन्यवाद देते हुए कहा कि  अरपा को लेकर यहां के पत्रकारों ने जितना लिखा है, उतना महत्व गंगा नदी को मध्य भारत के पत्रकारों ने नहीं दिया। आगे कहा कि कुछ समय से नदी पर्यटन को लेकर बात चल रही है, यह अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए नियम लागू किया जाना चाहिए। बल्कि यह कहूंगा कि नदी टूरिज्म की जगह नदी तीर्थ शुरू करें, जिससे समाज की आस्था उस पर रहे। प्रो. भारती ने आगे कहा कि नदी पर सबसे ज्यादा अधिकार समाज का है, लेकिन कार्पोरेट इसका सबस