लड़कियों को अखबारों से सिर्फ सात्वना मिल रहा काम नहीं
और इसे क्या कहें पुरुषवादी सोच न कहें तो कि अखबारों में लड़कियों के लिए जगह तक नहीं है। जगह तो खत्म किया हीं झुठी सात्वना भी दे रहे हैं इससे ज्यादा दुखद और क्या होगा। अखबारों में बेटियों को बचाने के लिए मुहिम चल रहा है, कई अखबार और चैनल तो विधिवित इसकी शुरूआत कर दिए हैं लेकिन वास्तविकता देखकर आप दंग रह जाएंगे। छत्तीसगढ़ हो या मध्यप्रदेश या देश की राजधानी हर जगह यही हाल है। अखबारों और टीवी चैनलों के मीडिया जगत में लड़कियों के लिए जगह खत्म हो गई है। नेशनल टीवी और बड़े अखबारों में महिला न्यूज रीडर को देखकर हर मां-बाप सोचता है कि उसकी भी बेटी इसी तरह बड़े लोगों का इंटरव्यू ले। उनसे जनता के अधिकार के लिए बहस करे, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखा जाए तो मीडिया में सिर्फ नाम का बीटिया बचाओ, बेटियों को आगे बढ़ाओ अभियान चल रहा है। वास्तव में मीडिया में सबसे ज्यादा बेटियों का शोषण हो रहा है। जो बेटियां मीडिया में है उन्हें महिलाओं और महिला बाल विकास से संबंधित ही सॉफ्ट बीट दिए जाते हैं, उनसे कभी भी ऐसे काम नहीं लिए जाते जिससे उनका विकास हो सके। पुरुषवादी मीडिया ने महिलाओं को आज बर्बादी के कटघरे