संदेश

अगस्त 10, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कार्पोरेट जगत के हाथों बिके मीडिया के लिए नेपोलियन बोना पार्ट का कथन कितना सही होगा...

महान विचारक नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा है कि हजार छूरों की तुलना में चार विरोधी अख़बारों से अधिक डरना चाहिए। आज जब मीडिया कार्पोरेट घराना हो गया है और कार्पोरेट में तब्दिल होकर बिक चुका है तो उनका यह कथन कितना सही होगा। नेपोलियन ने यह भी कहा था कि एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है यह वाकई सही है पर आज अखबारों और टीवी चैनलों पर जैसी तस्वीर छापी और दिखाई जाती हैं वह कितने शब्दों के बराबर हैं। अर्ध नग्न अभिनेत्रियों की वे तस्वीरें सुबह देखकर कोई युवा तो युवा बुजुर्ग का भी मन मचल जाएगा। क्या इस पर सरकार रोक लगा पाएगी, या यह उसी प्रकार कह दिया जाएगा। सेंसर बोर्ड की आज शख्त जरुरत है चाहे वह मीडिया हो या फिल्म उद्योग। अब यह बहाना नहीं चलना चाहिए कि जनता की जो मांग है जो जनता देखना चाहती है वह हम दिखा रहें है। क्या वाकई आम जन यही देखना चाहते है अगर उन्हें यह न दिखाया जाए तो वे समाचार नहीं पढ़ेगें, टीवी पर समाचार नहीं देखेंगे, फिल्म देखना बंद कर देंगे। यह सरासर गलत है तब भी लोग यह करेंगे और तब भी लोग यह करते थे। यह एक कोरा बकवास है जिसे लोग यह कह रहे हैं कि देखने वालों कि यह मांग हैं इसलिए

हरिवंश राय बच्चन की काव्य मधुशाला...

ह रिवंश राय बच्चन की मधुशाला... वाकई एक कवि कितना गहरा पैठ रखा है। वह एक-एक शब्द के लिए उस गोता लगाने वाले जैसा ही व्यवहार करता है जो सागर में मोती के लिए गोता लगातें हैं। कवि उनके जैसा ही मोती रुपी एक-एक शब्द को जोड़ता है और फिर वह कविता की रचना करता है। कविता को पढ़कर समझकर हम जितना कुछ पा जाते हैं वह बड़ी ही आसानी से मिल जाता है पर इसे तैयार करने में कवि की कितनी मेहनत लगती है यह समझना बहुत कठिन है। हरिवंश राय बच्चन जी की कव्य रचना मधुशाला को मैं पढ़ा।  इसे समझने में, पढ़कर इसका सिर्फ स्वाद लेने में ही मुझे नशा सा हो गया। पिछले कुछ दिनों से इस काव्य संग्रह पढ़ रहा हूं पर न मन की प्यास खत्म हो रही है और न यह संग्रह। यह वाकई मधुशाला हो गया है और मैं पीने वाला साकी। इसके प्याले का जाम का आदी सा हो गया हूं मैं। बच्चन जी की इस काव्य रचना को मैं पिछले 4 सालों से पढ़ने के लिए प्रयासरत था जो अब मिल पाई और वाकई किसी वस्तु की खोज पुरी होने और उसे पा लेने के बाद उसमें डुबकर गोता लगाने का अपना ही मजा है। क्या खुब लिखा है उन्होंने... सजे न मस्जिद और नमाज़ी कहलाता अल्लाताला, सजधजकर, पर,