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श्रमिक चाइना से नहीं आए फिर अप्रवासी या प्रवासी कैसे हो गये

#श्रमिक भारत के ज्यादातर राज्यों से मजदूरी की तलाश मेें एक बड़ा वर्ग हजारों किलोमीटर का सफर करता है। इसमें अनपढ़ और अकुशल मजदूरों के साथ ही पढ़े लिखे कुशल श्रमिक भी शामिल हैं। जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद जैसे महानगरों के अलावे छोटे छोटे नगरों में रोजगार की तलाश के लिए आए हुए हैं। पेट में  और बेरोजगारी का आलम यह है कि जिसे जहां रोजगार मिल गया वह वही अपना पेट पालना चाहता है। 5-10 हजार से लेकर इस 30- 35 हजार तक महीने के लिए हजारों हजार किलोमीटर का सफर यह वर्ग तय करता है। इन श्रमिकों में निम्न आय और मध्यमवर्गीय परिवार के बेरोजगार ज्यादा होते हैं। सब अपना श्रम बेचते और पैसा कमाते हैं। तभी तो यह श्रमिक हैं। भारत में श्रमिक कब अप्रवासी और प्रवासी हो गए पता ही नहीं चला। यह ना तो चाइना से आए हैं ना अमेरिका से ना ही पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश से यह भारत के ही श्रमिक हैं कामगार हैं। जो मजदूरी की तलाश में अपने घरों को छोड़कर दूसरे राज्यों की ओर रूख किए हुए हैं। इनको प्रवासी अप्रवासी श्रमिक तो नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह भारत के नागरिक हैं और भारत का संविधान सभी को सम