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नवंबर 29, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

15 हजार लोगों की मौत के 31 साल बाद नहीं दिला पाए न्याय, लानत है व्यवस्था पर

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भोपाल के हजारों लोगों की इहलीला एक झटके में समाप्त कर देने वाले आज 31 साल बाद भी आजाद हैं। कुछ दोषी पकड़े भी गए तो उन्हें सरकारों ने निजी लाभ के लिए विदेश भेज दिया। यह न्याय व्यवस्था पर सवाल है, सरकार पर सवाल है कि इनके दोषियों को 31 साल बाद भी सजा नहीं हुआ। लानत है ऐसे कानून, न्याय और सरकारों पर जिसने पूरे भोपाल को मुर्दा बनाने वालों को छोड़ दिया। शर्म आनी चाहिए ऐसी कानून को न्याय व्वस्था को और सरकार को जिसने 15 हजार लोगों को न्याय नहीं दे पाए। शर्म आनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट को जबलपुर हाईकोर्ट को और भोपाल के जिला कोर्ट में बैठे न्यायधीशों को जो सामूहिक मौत के जिम्मेदारों को सजा नहीं दे सके। उन मरने वालों को न्याय नहीं दे सके। ठिक 31 साल पहले की बात कर रहा हूं, यह वही समय था जब आधी रात थी। जब पूरा भोपाल चैन की नींद सो रहा था, और सोता रह गया था। भोपाल की 15 हजार से अधिक जनता दूबारा नहीं जग सकी थी। भोपाल के यूनियन कार्बाइड नामक कम्पनी जहां किटनाशक बनता था के कारखाने का टैंक नंबर 610 में एक विस्‍फोट होने, और उसके बाद रिसने वाली जहरीली गैस ने लगभग 15,000 से अधिक लोगो को मौत दे

पुरुषवाद का उदाहरण है महिलाओं का मंदिर-मस्जिद में प्रवेश पर रोक

हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई हर वर्गों में महिलाओं पर अत्याचार है। एक ओर जहां देवी पूजन कर मातृ को आराध्य माना जाता है वहीं महिलाओं को मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे में प्रवेश पर कही रोक होता है तो कहीं पूजा न ही करने दिया जाता। हालिया रिपोर्ट 28 नवंबर को देखने को आई है। इसमें दिखाया गया है कि शिंगणापुर में स्थापित शनि भगवान के मंदिर में एक महिला ने पूजा किया। इससे पहले हनुमान को छुने पर प्रतिबंध है। वहीं मस्जिद में भी कुछ समय पहले महिलाओं के प्रवेश पर वर्जित किया गया है। राजस्थान की बात की जाए तो वहां महिलाओं को सिर हमेशा ढंके रहना होता है। पुरुष प्रधान देश में महिलाओं के पूजन पर प्रतिबंध क्यों नहीं। नवरात्रि में नौ दिन उपवास बंद क्यों नहीं होता, लोग पुरुषों से ही शादी क्यों नहीं कर लेते उन्हीं से बच्चा भी पैदा करें। महिलाओं में मासिक धर्म के कारण उन्हें अछूत माना जाता है जबकि इसी देश में एक मंदिर ऐसा है जहां पर महावारी को प्रसाद और उन्नति के रूप में पूजा की जाती है। महावारी उन्नति का प्रतिक है। मंदि-मस्जिद में प्रवेश पर रोक पुरुषवाद का स्पष्ट उदाहरण है। महिलाएं भी उसी