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इमानदार...होने का मलाल है

एक सड़क छाप इमानदार ने लिखा है... हतोत्साहित हो जाता हूं यह देखकर मैं कि आज भी सड़क पर हूं अपनी इमानदारी के कारण। जो लोग सड़क पर थे कल तक वे आज आसमानी सफर कर रहे हैं। मैं सड़क पर चलता भी हूं तो डर लगता है़। इन जर्जर सड़क की कहीं गिट्‌टी छिटककर लग ना जाए। गरीब हूं इसका मलाल नहीं मुझे। मलाल यह भी नहीं है कि उनकी उचे लोगों से पटती है। मुझे जलन भी नहीं है उनकी कमाई को देखकर। उंचे लोग कैसे बनूं यह राज नहीं जानता बस इतना सा मलाल है। मेरे दिल मे हैं चुभन इस बात की कि तरक्की मैं नहीं कर पाया पूरी मेहनत करके। मैने हमेसा मुल्याकंन भी किया इमानदारी के राह पर चलकर। हां कई बार इमानदारी लोगों ने खरीदने के लिए दाम जरुर लगाए पर दाम क्या करता इसलिए उसे बेंचा नहीं। खुलकर कहता हूं कि मैं अपनी इमानदारी को बेंच नहीं पाया शायद यह गलती हुई है मुझसे। फिर खयाल आया मुझे कुछ तो ऐसा बदलाव उन्होंने भी किया जरुर होगा। जिससे आज वे अमीर है और हम गरीब। चुभती है हमेशा एक बात दिल में कि वे रोटी खाने के लिए वक्त को तरसते हैं और हम हर वक्त रोटी को तरसते हैं। फिर दिल को सुकुन आता है मुझे की मैं कल भी मरा हुआ सा था

पुस्तकालयों की घटती संख्या और हम

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दीपेंद्र की कलम से... क्या है? क्यों है, क्या हुआ था? कैसे हुआ था? और आने वाले समय में उससे क्या उम्मीदें होती। इन सारे सवालों के जवाब इतिहास से हीं मिलते हैं। यह इतिहास हमें कहां से मिलता है या तो दादा दादी की कहानियों में या फिर पुस्तकों में। अब एकल परिवारवाद जोरों पर है तो कोई भी अब अपने मां बाप के साथ नहीं रहता। जब वह साथ नहीं रहता तो बच्चे अपने दादा दादी से दूर होंगे। इतिहास तो बच्चों को पता नहीं चलेगा। बच्चे कैसे जाने की इतिहास क्या है। इसके लिए पुस्तक है जो बताती हैं कि इतिहास क्या है? वर्तमान में जो हम देख रहे हैं वह इतिहास की देन है और जो वर्तमान है वह भविष्य है। अब ऐ पुस्तकें कहां मिलेंगी जिससे इतिहास की जानकारी हो तो फिर याद आता है कि पुस्तकों को संग्रह किया जाता रहा है पुराने समय से यह प्रक्रिया चलती आ रही है। राजा रानी सभी की कहानियां और इतिहास इसी से तो पता चलता है कि कौन सा राजा कैसा था और वह अपनी रानी और प्रजा के साथ कैसे रहता था। जानकारी देने वाली यह पुरानी पुस्तकें मिलेगी कहा से जब यह बात याद आती है तो हम संग्रहालय की तरफ रूख करते हैं कि पुस्तक वहां