इमानदार...होने का मलाल है
एक सड़क छाप इमानदार ने लिखा है... हतोत्साहित हो जाता हूं यह देखकर मैं कि आज भी सड़क पर हूं अपनी इमानदारी के कारण। जो लोग सड़क पर थे कल तक वे आज आसमानी सफर कर रहे हैं। मैं सड़क पर चलता भी हूं तो डर लगता है़। इन जर्जर सड़क की कहीं गिट्टी छिटककर लग ना जाए। गरीब हूं इसका मलाल नहीं मुझे। मलाल यह भी नहीं है कि उनकी उचे लोगों से पटती है। मुझे जलन भी नहीं है उनकी कमाई को देखकर। उंचे लोग कैसे बनूं यह राज नहीं जानता बस इतना सा मलाल है। मेरे दिल मे हैं चुभन इस बात की कि तरक्की मैं नहीं कर पाया पूरी मेहनत करके। मैने हमेसा मुल्याकंन भी किया इमानदारी के राह पर चलकर। हां कई बार इमानदारी लोगों ने खरीदने के लिए दाम जरुर लगाए पर दाम क्या करता इसलिए उसे बेंचा नहीं। खुलकर कहता हूं कि मैं अपनी इमानदारी को बेंच नहीं पाया शायद यह गलती हुई है मुझसे। फिर खयाल आया मुझे कुछ तो ऐसा बदलाव उन्होंने भी किया जरुर होगा। जिससे आज वे अमीर है और हम गरीब। चुभती है हमेशा एक बात दिल में कि वे रोटी खाने के लिए वक्त को तरसते हैं और हम हर वक्त रोटी को तरसते हैं। फिर दिल को सुकुन आता है मुझे की मैं कल भी मरा हुआ सा था