पत्रकारिता करना है तो दिल में आग और आंखों में अंगारे रख लो
पत्रकारिता करना है तो दिल में आग और आंखों में अंगारे होना चाहिए वर्ना रांड बजाना और भांड गाना तो पुरी मीडिया गा रही है उसमें और आपमें फर्क ही क्या है --------------- यह लेख कोरी बची पत्रकारिता जो सोशल मीडिया के माध्यम से ही जीवित रखी जा सकती है। मीडिया कार्पोरेट के हाथों बिक चुकी है। वह भी इतने गंदे तरिके से कि पत्रकारिता के स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले वे सारे हवा हवाई सिर्फ नमूने लगते हैं। वो कहते हैं न थ्योरी और प्रेक्टिकल में फर्क होता है। बस मीडिया में वह ही चल रहा है। मीडिया माने रांड चकला में बैठी हुई रांड जिसे पैसा दो और सेक्स कर कुछ समय के लिए संतुष्टी पा लो। सही मायने में अब पत्रकारिता बची है तो सिर्फ सोशल मीडिया पर जहां खुलकर लिख भी सकते हैं और बजा भी सकते हैं। वर्ना खाना तो भांड भी गाते थे राजाओं के समय में। पत्रकारिता में संपादक कुछ नहीं होता, प्रबंध संपादक ही सब कुछ होता है। इस बात को पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले दिमागी रूपी से समझ ले यही सही होगा। दिल में आग है तो उसे जलाए रखो और सोशल मीडिया के माध्यम से उस आग को लोगों के आखों में अंगारे बनाओ। जुड़ जाओ किसी भी मीडिया सं