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सितंबर 20, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पत्रकारिता करना है तो दिल में आग और आंखों में अंगारे रख लो

पत्रकारिता करना है तो दिल में आग और आंखों में अंगारे होना चाहिए वर्ना रांड बजाना और भांड गाना तो पुरी मीडिया गा रही है उसमें और आपमें फर्क ही क्या है --------------- यह लेख कोरी बची पत्रकारिता जो सोशल मीडिया के माध्यम से ही जीवित रखी जा सकती है। मीडिया कार्पोरेट के हाथों बिक चुकी है। वह भी इतने गंदे तरिके से कि पत्रकारिता के स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले वे सारे हवा हवाई सिर्फ नमूने लगते हैं। वो कहते हैं न थ्योरी और प्रेक्टिकल में फर्क होता है। बस मीडिया में वह ही चल रहा है। मीडिया माने रांड चकला में बैठी हुई रांड जिसे पैसा दो और सेक्स कर कुछ समय के लिए संतुष्टी पा लो। सही मायने में अब पत्रकारिता बची है तो सिर्फ सोशल मीडिया पर जहां खुलकर लिख भी सकते हैं और बजा भी सकते हैं। वर्ना खाना तो भांड भी गाते थे राजाओं के समय में। पत्रकारिता में संपादक कुछ नहीं होता, प्रबंध संपादक ही सब कुछ होता है। इस बात को पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले दिमागी रूपी से समझ ले यही सही होगा। दिल में आग है तो उसे जलाए रखो और सोशल मीडिया के माध्यम से उस आग को लोगों के आखों में अंगारे बनाओ। जुड़ जाओ किसी भी मीडिया सं

अब आजादी की लड़ाई फिर से शुरू करनी होगी

कई सौ साल तक भारत के लोग गुलाम रहे इस गुलामी से अब भी हम आजाद नहीं है। न बोलने की आजादी है न लिखने की और न जीने की। हम जी रहे हैं किस लिए पता नहीं देश है क्या किस लिए पता नहीं। देश कुछ लोग चला रहे हैं। वह भी सिर्फ कुछ हजार लोग 125 करोड़ से अधिक आबादी के तकदीर का फैसला कर रहे हैं। यह तो अंग्रेज और मुगलों से भी भयानक है। भयानक ही नहीं पूरे देश को नपुंसक बनाने वाले कानून व्यवस्था और संविंधान के कारण यह सब हो रहा है। जी हां इस ओर कभी किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया। जब सब आजाद है तो सब देश के विकास में हिस्सा क्यों नहीं बनते। जिम्मेदारी सबके पास होनी चाहिए। गुलामी क्यों भूखे कोई क्यों मर रहा है किसी का एहसान नहीं चाहिए। सबको अधिकार मिले। यह अधूरा लेख है.... मैं अपने अधूरे विचार नहीं छोड़ता फिर लिखुंगा इस ब्लॉक को आपके लिए...

कई जानकारी सोचने पर मजबूर कर देती है, जिंदगी और कुछ भी नहीं

आरती कुंज बिहारी की, बड़ी देर भाई नंदलाला, बनवारी रे, ऐ मालिक तेरे बन्दे हम, ज्योत से ज्योत जगाते चलो, हे राम हे राम, दिल अपना और प्रीत पराई, एक परदेसी मेरा दिल ले गया, जाने कहाँ गए वो दिन, मन डोले मेरा तन डोले, मेरा नाम राजू घराना अनाम, ओ दुनियाँ के रखवाले, सबकुछ सिखा हमने, एक प्यार का नगमा है, मौजो की रवानी है जिन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है जैसे गीतों को लिखने वाले गीतकार संतोष आनंद के बारे में आज पढ़ने का मौका मिला। यह उस दौरान हुआ जब मैं @दैनिक भास्कर बिलासपुर संस्करण के 22वें स्थापना दिवस पर सीनियर यशवंत गोहिल ने जब उनके गीत को गाया। कार्यक्रम के दौरान गेस्ट के नाते उन्हें एंकर ने बुलाया और उन्हें कुछ नगमें सुनाने को कहा। इस दौरान उन्होंने शोर फिल्म का यही गीत सुनाया एक प्यार का नगमा है... इस दौरान उन्होंने उनकी जीवनी पर थोड़ा प्रकाश भी डाला। जानकर बहुत कुछ जानने को मजबूर हो गया। अंत में इंटरनेट का सहारा लिया। उनके बारे में जो जानकारी मिली वह गीतकार संतोष आनंद के बारे में जानकर सोचने पर मजबूर हो गया। इतने सारे नगमे लिखने वाले संतोष आनंद जी के जीवन में इतने