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अक्तूबर 5, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पशु वध बंद हो...गाय क्या और बकरी क्या

बाकरीद आ गया है...अब कुर्बानी की बात होगी। कुर्बानी के नाम पर हजारों बकरों को काटा जाएगा। इससे पहले नवरात्रि बीता इसमें भी हजारों बकरों को बली के नामपर काट दिया गया। हो क्या रहा है समझ नहीं आता। कुछ हिंदूओं ने कहा कि गाय मत काटो क्योंकि इसके दुध को हम पीते है यह हमारी माता है। फिर नवरात्र पर बकरी के बच्चे को क्यों काट दिया क्या बकरी का दुध नहीं पीते। अगर बकरी का दुध पीते हैं तो बकरा तो भाई हुआ ना। मतलब आप अपने ही भाई के मांस को खा रहे हैं। मुझे उन लोगों से घीन आता है जो इस तरह की हरकत करते हैं। जरा सोचिए कितनी खुबसुरत चीज बनाई है ऊपर वाले ने इंसान तो इंसान ही बने रहो ना क्यों जानवर बनने पर तुले हुए हो। तुले क्या हो उससे भी तो गए बीते हो जंगल के जानवर शेर, भालू, तेंदुआ अपने भूख को मिटाने के लिए शिकार करते हैं जबकि तथा कथित इंसान शौक पुरा करने के लिए जीवों की हत्या कर रहे है। कितना गलत है जीवों की हत्या करना। गाय को लेकर यह धारना बन गई है लोगों में की गाय हमारी माता है क्योंकि उसका हम दुध पीते है और वह प्रकृति दृष्टिकोण से भी अच्छी है तो क्या दूसरे जीव खराब है? जितने भी हिंदू वादी लोग

रावण मारा गया....

बधाई हो रावण मारा गया है... कितना खुश हुए आप। दसहरा बीत गया लोगों के लिए सिर्फ यह त्योहार ही तो है। रावण मारना और उसके बाद घर जाकर मन में रा‌वण को पाले रखना। मैदान में रा‌वण को जब मारते है तो कहते हैं कि मन की बुराई रावण को मार दो और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक है यह त्योहार क्या वाकई मन की गंदगी दूर हो जाती है। क्या हम फिर उसी तरह से जीवन गुजारते है जैसे बचपन में गुजारते थे। नहीं ना यही है मन में बैठे रावण की देन इसे इतनी आसानी से नहीं मारा जा सकता और कोई मारना भी चाहे तो नहीं मार सकता क्योंकि उसे दूसरे मारने नहीं देंगे। रावण दहन में अक्सर देखा जाता है कि गंदगी दूर करने की बात तो कहते है पर शहर में इतना गंदगी होता है उसे कभी कोई साफ तक नहीं करते। काश एक दिन भी लोग गंदगी साफ करते शहर में उन तमाम सफाई कर्मियों को छुट्‌टी देकर।