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मार्च 7, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुलामी से दो कदम ही निकले हैं हम

15 अगस्त को हम आजाद हुए। ढाई साल बाद बना हामारा संविधान। नकल का यह संविधान 26 जनवरी 1950 हमारा संविधान लागू हुआ। इसमें वे सारी व्यवस्थाएं हमें मिली जो अंग्रेजों की नकल कर ली गई। गुलामी हमें जकड़ी रही। साल बीतते गए। साल, दस साल और फिर पचास साल बीत गए। हम उन्हीं नियमों को मानते रहे जो उस समय की व्यवस्था थी। कुछ परिवर्तन भी हुआ पर नाम मात्र का। दुनिया का सबसे बड़ा लिखीत संविधान होने का परचम हर साल लहरा रहे हैं पर फायदा क्या है पता नहीं। संविधान ऐसा ही कि दो वक्त की रोटी इसके कागज को जलाकर सेंकी जा सकती है लेकिन गरीबों के लिए इसमें कुछ भी नहीं है। अमीरों के लिए भी कुछ नहीं है। अगर इसमें कुछ है तो मध्यम वर्गीय लोगों के लिए न मरे में है न जींदा में। ये वे लोग है जो न मर्द में है न औरत में थर्ड जेंडर को कुछ समय तो मान्यता भी मिल गई है। इनका उससे भी हाल बुरा है। अभी तो बस जिसके पास राशन कार्ड, वोटर आईडी, आधार, बैंक में खाते आदि-आदि है उन्हे सभी लाभ मिल रहे हैं। जिनके पास नहीं है वे परेशान है इसके लिए प्रतिदिन सिर फुड़वा रहे हैं। साला एक नागरिकता ही नहीं है भारत का। किसी के पास अगर वोरट आईडी कार