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एक लड़ाई जो पांच हजार सालों से जारी है, स्वरूप बदलकर आरक्षण हुआ

देश में एक ऐसी लड़ाई जारी है जो पिछले पांच हजार सालों से चल रही है। जी हां भारत में जाति वाद की लड़ाई लगभग 5 हजार साल पहले शुरू हुआ। हलांकि आजादी मिलने के बाद यह व्यवस्था को खत्म करने की कवायद की गई, लेकिन इसके स्थान पर विद्वानों ने आरक्षण लाया। इसे लाया तो 10 साल के लिए था, लेकिन अब यह एक महामारी और गंभीर बिमारी की तरह बढ़ता ही जा रहा है। विभिन्न जाति के लोग इसको पाने के लिए आंदोलन और पब्लिक सेक्टर के संसाधनों को जला रहा है। यह अब लड़ाई की तरह हो गया है, जिसे पाने के लिए लोग खून खराबा पर तक उतारू हैं। जातिवाद में आजादी के पहले जितना खतरनाक था उससे कहीं ज्यादा खतरनाक अब होता जा रहा है। पहले उच्च जाति और निम्न जाति में लोगों का विभाजन किया गया था, पहले चार वर्णों में बांटा गया था, ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र थे। आजादी के बाद परिस्थिति बदली, और आरक्षण के लिए भी चार वर्ग ही बनाए गए, या यूं कहे कि इस जातिवाद को जारी रखते हुए विद्वानों ने गंदगी को खत्म करने के बजाय उसे और बढ़ावा दिया। विद्वानों ने जनरल, ओबीसी, एससी और एसटी किया। जनरल मतलब ब्राह्मण, क्षत्रीय, ओबीसी का मतलब वैश्य, एसस