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गंगा किनारे गांव की यात्रा

        अयोध्या यात्रा समाप्ति के बाद गाड़ी रायबरेली की ओर मुड़ गई। अब यात्रा रायबरेली जिले के लालगंज तहसील तक जानी है। रास्ते में चलते हुए चर्चा सनातन संस्कृति को मानने और नदियों की महत्ता को समझने वाले पूर्वजों पर शुरू हुई। जब पूर्वज नदियों के किनारे निर्मल जल के लिए बसे होंगे। जब बसे होंगे तो उनकी सोच निश्चित ही नदियों से मिलने वाली सुविधाएं भी होंगी। बाद में खेती और यातायात से वे प्रभावित हुए होंगे। नदियों से मिली सारी सुविधाओं से संपन्न हुए इंसान को नदियों में उस समय निश्चित ही ईश्वर दिखाई दिया होगा तभी तो पुण्य लाभ के लिए वह हजारों वर्ष से नदियों को ईश्वर मानकर उनकी पूजा कर रहा है। जल मार्ग से यातायात तब से अब तक अनवरत जारी है, ऐसा नहीं है कि सभी नदियों के किनारे बसने वाले गांव और आबादियां संपन्न ही रही, उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई। बड़ी आबादी नदी के बाढ़ और कटाव से समय समय पर प्रभावित हुए। यही वाजह रही जो नदी किनारे बसे गांवों की आबादियां बाद के वर्षों में सड़क किनारे बसने लगी और अब हाईवे के किनारे आबाद हो रही हैं। रायबरेली से लालगंज के मार्ग आधुनिक रेल डिब्बा कारखाना है यहीं से

मीडिया पर विदेशी फंडिंग के आरोप लगेंगे

दैनिक भास्कर, बीबीसी और दूसरी तमाम मीडिया हाउस पर कार्रवाई के बाद अब न्यूज क्लिक मामले पर कार्रवाई  को पत्रकार पहचान चुके हैं। हालांकि इस कार्रवाई को आईटी सेल का हिस्सा और चाटुकार मीडिया घराने से जुड़े चंद स्वार्थी और चाटुकार लोग अच्छा मान रहे हैं क्योंकि सरकार उनके हर एक शब्द को खरीद ली है। जिनके शब्द नहीं बिके हैं सरकार वह हर आवाज को लगातार दबाने के लिए काम कर रही और करेगी जो आवाज सत्ता के खिलाफ होगी। आरोप विदेशी फंडिंग के लगेंगे, क्योंकि यह आरोप लगाकर लोगों को अपने पक्ष में करना आसान है। चीन, पाकिस्तान और तमाम उन देशों से फंडिंग का आरोप लगा दिया जाएगा जो दुश्मन देश हैं, इसे इतनी तेजी से वायरल किया जाएगा कि देश की जनता कार्रवाई को सही मान ले, क्योंकि झूठ को बेचने वालों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है और वे अब मीडिया की हर उस आवाज को हर तरह से दबाएंगे जो उनके खिलाफ होगी। आवाज दबाने की हर वह तरकीब कोई और नहीं बल्कि मीडिया की पढ़ाई की, मीडिया से जुड़े चंद चाटुकार और दलाल किस्म के लोग ही कर रहे हैं। क्योंकि लोहा लोहे को काटता है।  अगर वास्तव में कोई अपराध हुआ है तो कानून को अपना काम करना चा

जाति संघर्ष को खत्म करने उठाना होगा कदम

देश के विभिन्न हिस्सों से जाति संघर्ष की खबरें मिल रही हैं। यह विचलित करने वाली स्थिति को निर्मित कर रही है। मणिपुर में सांप्रदायिक तनाव का कारण भी जाति संघर्ष है। ऐसा ही संघर्ष छत्तीसगढ़ के बस्तर और जशपुर में भी देखने को मिल रहा है। यहां के मूल आदिवासी ईसाई धर्म को अपनाने वाले आदिवासियों का विरोध कर रहे हैं विरोध इतना ज्यादा बढ़ चुका है की यह अब संघर्ष का रूप धारण कर रहा है। इस बात का फायदा कुछ राजनीति पार्टियां उठा रही हैं और इस तरह के संघर्ष को बढ़ावा दे रही हैं। जबकि इसका समाधान निकलने के दिशा में काम करना चाहिए। हाल के दिनों में जाति संघर्ष का नया और ताजा मामला बिलासपुर जिले के तखतपुर और मस्तूरी में और बलौदा बाजार के लवण में देखने को मिला। प्रशासन ने लवण का मामला तो सुलझा लिया लेकिन बिलासपुर के तखतपुर और मस्तूरी का मामला अब भी पस भरे घाव की तरह लगातार दर्द पहुंचा रहा है। राजनैतिक दल पहले धर्म को आधार बनाकर लोगों के भावनाओं से खिलवाड़ किया और फिर अब जाति संघर्ष में देश को झोंकने का काम कर रहे हैं। राजनैतिक दलों से जुड़े लोगों के बयानबाजी के कारण आज देश के अलग अलग हिस्से में तनाव की

न्याय व्यवस्था से उठता विश्वास

उत्तरप्रदेश में पिछले एक माह में यह दूसरी घटना है जब पुलिस की मौजूदगी में किसी की निर्मम हत्या कर दी गई हो। इससे पहले पुलिस खुद गाड़ी पलटकर और अपराधी का पीछा कर एनकाउंटर कर रही थी। यह न्याय पाने और न्याय देने का तरीका पुलिस और सरकार ने जो इजाद की हैं यह भविष्य के लिए बहुत ही खतरनाक होते जा रहे हैं। कुछ जगहों से सूचना आ रही है की जेल के भीतर बन कैदियों और बंदियों तक की हत्या कर दी जा रही है। खासकर ऐसे जेलों में जहां गंभीर मामलों के अपराधी बंद हैं जिनका ट्रायल अब भी कोर्ट में लंबित है। आम जनता का पहले ही न्याय व्यवस्था के ऊपर से विश्वास डगमगा गया है, ऐसे में इधर जज के सामने गोली मारकर हुई हत्या ने कानून व्यवस्था के ऊपर से विश्वास उठाने का काम किया है।    न्याय मिलने में हो रही देरी का दुष्परिणाम अब सामने आने लगा है। पीड़ित अब न्याय पाने के लिए बेचैन और उतावले होने लगे हैं। लोगों का कानून व्यवस्था पर से विश्वास कम हो रहा है। वह अपने ढंग से न्याय की खोज करने निकल पड़े हैं। जैसे सन्यासी शांति की खोज के लिए दूरस्थ वनांचल क्षेत्र का चयन कर रहे हैं। उसी तरह से पीड़ित कहे या न्याय की खोज करने व

मुंडेर पर

अब नहीं आते कौए छत की मुंडेर पर कांव कांव कर संदेश भी नहीं देते  मेहमानों के आने की वह कहानी का बढ़ाते प्रदूषण से हो गया है खात्मा  जैसे जंगल में फलदार पेड़ खत्म हो गए हैं भुखमरी में बंदर आ रहे हैं गांव और शहर में मानव के मचाए उत्पात का बदला लेने बंदर  जंगल से बस्तियों में आकर उत्पात मचा रहे हैं  बिछाए तारों के जाल में खुद इंसान घिर गया है इन्हीं तारों में कभी कौआ फंसे अब बंदर उलझ रहे हैं किचन गार्डन से सब्जियां, बगीचे से फल हर दिन की दिनचर्या में कर लिए शामिल अब गांव और शहर के लोग परेशान हो रहे हैं बंदर का उत्पात मानव के मचाए उत्पात से कम है अब भी वक्त है सुधरने का, वर्ना जंगल में हैं शेर, हाथी, भालू जैसे जीव जो मुंडेर पर आ बैठेंगे

विश्व के 1.6 अरब लोगों को पीने का स्वच्छ जल नहीं मिल पा रहा है

विश्व जल दिवस पर विशेष जानकारी नदी एवं जल विशेषज्ञ डॉ. ओम प्रकाश भारती से जानिए ‘जल है तो कल है।' विश्व जल दिवस यानी जल के महत्व को समझने का दिन।  जल को संरक्षित कर सभी प्राणियों के लिए जल उपलब्ध कराने हेतु संकल्प लेने का दिन। इन्हीं उद्धेश्यों को लक्षित कर संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में रियो डि जेनेरियो के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया, तब से प्रतिवर्ष विश्व समाज जल दिवस मनाता आ रहा है। आज विश्व के 1.6 अरब लोगों को पीने का स्वच्छ जल नहीं मिल पा रहा है। जल के संरक्षण तथा सभी को स्वच्छ जल उपलब्ध कराना आज  की सबसे बड़ी चुनौती  है। राष्ट्रीय जलनीति 1987 के अनुसार, जल प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है और बहुमूल्य संपदा है। प्रकृति ने हवा और जल प्रत्येक जीव के लिए निःशुल्क प्रदान किए हैं। जल सबको चाहिए और इस पर सबका अधिकार  होना चाहिए। लेकिन आज वर्चस्ववादियों ने जल पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। आम आदमी गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है। जल में आवश्यकता से अधिक खनिज पदार्थ, अनावश्यक लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ,

सरकारें बना रही पत्रकारिता पर दबाव

सरकारी तंत्र का दुरूपयोग करके पत्रकारिता पर दबाव बनाना सरकारों का अब एक हथकंडा हो चुका है। मुख्य तीन स्तंभ को अपने कब्जे में लेने के बाद अब कथित चौथे स्तंभ को भी मोड़ने की कोशिश की जा रही है। लोकतंत्र के सभी चारो स्तंभ लगभग सरकार के शरणागत हो चुके हैं, जो नहीं हुए उन्हें किसी भी हद तक जाकर गुलाम बनाया जा ‌रहा है। हाल के दिनों में जिस तरह से हाईकोर्ट में जजों की राजनैतिक नियुक्तियां करवाई गयी है, जिस तरह से आईएएस, आईपीएस राजनैतिक विशेष पार्टियों के लिए काम कर रहे हैं, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका पूरी तरह शरणागत हुए से दिखने लगे हैं। बीच बीच में दो‌ चार जजमेंट करके भले ही सुप्रीम कोर्ट और गिने चुने हाईकोर्ट के जज सुर्खियों में आ जाएं, वरन अब तो न्यायालय और न्यायपालिका से लोगों का भरोसा उठने सा लगा है। अपराधियों के लिए सहूलतें बढ़ती जा रही हैं, पीड़ित लगातार प्रताड़ित होते जा रहे हैं। लोक तंत्र से लोक गायब है, जन तंत्र से जन, न्यापालिका‌ से न्याय गायब है, व्यवस्थापिका से व्यवस्था, कार्यपालिका से कार्य गायब है, बची हुई थी मीडिया उससे अब समाचार गायब हो रहे हैं। अगर सरकार ने कह