जाति संघर्ष को खत्म करने उठाना होगा कदम

देश के विभिन्न हिस्सों से जाति संघर्ष की खबरें मिल रही हैं। यह विचलित करने वाली स्थिति को निर्मित कर रही है। मणिपुर में सांप्रदायिक तनाव का कारण भी जाति संघर्ष है। ऐसा ही संघर्ष छत्तीसगढ़ के बस्तर और जशपुर में भी देखने को मिल रहा है। यहां के मूल आदिवासी ईसाई धर्म को अपनाने वाले आदिवासियों का विरोध कर रहे हैं विरोध इतना ज्यादा बढ़ चुका है की यह अब संघर्ष का रूप धारण कर रहा है। इस बात का फायदा कुछ राजनीति पार्टियां उठा रही हैं और इस तरह के संघर्ष को बढ़ावा दे रही हैं। जबकि इसका समाधान निकलने के दिशा में काम करना चाहिए। हाल के दिनों में जाति संघर्ष का नया और ताजा मामला बिलासपुर जिले के तखतपुर और मस्तूरी में और बलौदा बाजार के लवण में देखने को मिला। प्रशासन ने लवण का मामला तो सुलझा लिया लेकिन बिलासपुर के तखतपुर और मस्तूरी का मामला अब भी पस भरे घाव की तरह लगातार दर्द पहुंचा रहा है।

राजनैतिक दल पहले धर्म को आधार बनाकर लोगों के भावनाओं से खिलवाड़ किया और फिर अब जाति संघर्ष में देश को झोंकने का काम कर रहे हैं। राजनैतिक दलों से जुड़े लोगों के बयानबाजी के कारण आज देश के अलग अलग हिस्से में तनाव की स्थिति है। कहने के लिए तो चुनाव आयोग सभी दलों और उनके नेताओं के बयानों पर नजर रख रही है, लेकिन ऐसा लगता है की आयोग के चस्मे का नंबर कुछ ज्यादा ही खराब है। क्योंकि देश को मुसीबत में डालने का काम देश की सत्तारूढ़ पार्टी ही ज्यादा कर रही हैं। मणिपुर पिछले कुछ सालों से शांत था, वहा हाल फिलहाल में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी ने वहा जाति संघर्ष का बीज बोने का काम की। यह बीज गाजर घास की तरह तेजी से पूरे राज्य को अपने चपेट में लेकर वहा के उन आम लोगों को भी जलाना शुरू कर दी जिन्हें आरक्षण से कोई लेना देना नही था। यही हाल छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी देखने को मिल रहा है। यह की सरकार आदिवासियों के विरोध का समाधान निकलने की जगह विपक्ष को उन मुद्दों को भुनाने और घाव को नासूर बनाने के लिए सौंप दी है। कवर्धा और बेमेतरा कांड में भी सरकार एक वर्ग के लिए प्रेम और दूसरे के लिए चुप्पी धीरे धीरे वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। नई घटना मस्तूरी में सामने आई है यहां भी दो जातियों के बीच संघर्ष सामने आया है। इसको नियंत्रण में रखने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात तो कर दी गई जा, लेकिन इसका समाधान निकलने का काम अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं किया है। कुछ समय से कांग्रेस और उसके नेता भाजपा की राह पर चल रहे हैं। यह बस्तर के आदिवासी और ईसाई संघर्ष की बात हो या फिर कवर्धा और बेमेतरा के हिंदू मुसलमान संघर्ष या अब मस्तूरी में ठाकुर - सतनामी समाज के संघर्ष की बात हो। हर योजना और मुद्दे पर जाति संघर्ष पलीता लगाने में काफी होते हैं यह सरकारों को समझना होगा। जाति संघर्ष का समाधान निकलने के लिए भाजपा और कांग्रेस को राजनीति छोड़कर एक साथ आना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश और प्रदेश जल्द ही जाति संघर्ष की आग में घिरा दिखेगा। अब ऐसे कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जो जाति संघर्ष की स्थिति में कारगर उपाय हो। 


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